छोड़ चला हूँ मैं एक साहिल को, किसी और किनारे की तलाश में,
एक मकसद की चाह में, एक नए जज़्बे की आस में|
दूसरा साहिल है दूर पर दिखता लाजवाब है,
तैरना आता है आधा-अधुरा, और बाकी आधा मन का विश्वास है|
बहुत जोश है, थोडा होश है, दबे अरमान हैं जिन्हें पंख देना है,
लहरों को चीर, डर को पछाड़, अब तो बस यह सफ़र मुकम्मल करना है|
--पथिक